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Sunday 28 May 2017

प्राचीन भारत के 8 वैज्ञानिक, इन्होंने हजारों वर्ष पहले ही ऐसी महान खोजें कर ली थी।

प्राचीन भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्हें जानकर भारतीयों को गर्व महसूस होगा, आज भी प्राचीन समय में लिखे गए कई वैज्ञानिक ग्रंथों का उल्लेख इतिहास में मिलता है। इनके द्वारा बहुत से ऐसे वैज्ञानिक सिद्धांत लिखे गए हैं, जिन्हें अगर आज के समय में इस्तेमाल किया जाए तो दुनिया का विकाश बहुत ही आगे बढ़ जाएगी। लेकिन उनके द्वारा लिखी गई बहुत से वैज्ञानिक ग्रंथें आज भी लोगों से गुमनाम और उपेक्षित हैं। अगर हम भारत का इतिहास को पलटकर देखें तो हमें ऐसे कई वैज्ञानिक मिलेंगे जो गुमनाम है, उनकी रचनाओं को न तो संभाल कर रखें गयें और ना ही उन पर कभी शोध किए गए, जो यही आज के विज्ञानं के लिए सबसे बड़ी बदकिस्मती है। यह सारी वैज्ञानिक रचनाएं उस समय की गई जिस समय आधी से अधिक दुनिया सिर्फ जीने के लिए खाने पीने पर निर्भर थे सीधी बातों में कहें तो वे विकास के प्रथम चरण में भी नहीं थे। इस बात से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत के वैज्ञानिक उस समय कितने दूरदर्शी और महान हुआ करते थे। ऐसे ही वैज्ञानिक सिद्धांतों को लिखने वाले 8 भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में यहां बताए गए हैं जिन्होंने अपने समय में बेहद जटिल वैज्ञानिक शिद्धान्तों की खोजें किये थे।
1. आर्यभट्ट
Image: आर्यभट्ट

आर्यभट्ट की गिनती भारत के महानतम खगोल वैज्ञानिकों मे की जाती है, उन्होंने उस वक्त ब्रह्मांड के रहस्य को दुनिया के सामने रखा जब दुनिया के कई देश ठीक से गिनती भी नहीं जानते थे। आर्यभट्ट उस समय खगोल विज्ञान के प्रकांड पंडित थे, हालांकि, दुनिया मानती है कि पृथ्वी और सूर्य के सही संबंधों के बारे में सबसे पहले बताने वाला इंसान निकोलस कॉपरनिकस था, लेकिन आर्यभट्ट ने यह बात निकोलस से हजारों साल पहले ही बताई थी। आर्यभट्ट ने ही यह बात बताई कि पृथ्वी अपनी धुरी से घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है, बाकी ग्रह भी सूर्य का चक्कर अपनी अलग-अलग दुरी से अपनी अलग कक्षाओं से लगाते हैं। यह बात उन्होंने उस समय बताई थी जिस समय यूनान के दार्शनिक अरस्तु यह मानता था कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है और सूर्य के साथ बाकी सभी ग्रह और सितारें इसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा आर्यभट्ट को यह भी ज्ञान था की चंद्रमा और दूसरे ग्रह खुद की रोशनी से नहीं बल्कि सूर्य की रोशनी से चमकते हैं। खगोल विज्ञान के इस महान पंडित ने पृथ्वी की परिधि का सही सही मान बताया था इसमें आज के हिसाब से बस 65 मील की अशुद्धि है, इतना ही नहीं आर्यभट्ट ने तो पृथ्वी के घूमने के हिसाब से समय के अलग अलग भागों में भी बांटा है, इन्होंने सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग को समान माना है। उनके हिसाब से एक कल्प में 14 मन्वंतर, एक मन्वंतर में 72 महायुग, एक महायुग में चार सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग होतें हैं, और एक महायुग में पृथ्वी 1582237500 बार घूमती है। इन सभी सिद्धांतों और गणनाओं से आर्यभट्ट की बुद्धिमत्ता का पता चलता है, लेकिन शून्य (0) की खोज ने इन्हें पुरे विश्व विज्ञान के इतिहास में अमर कर दिया। शून्य के बिना विज्ञान का अस्तित्व ही निरर्थक हो जाएगा, विज्ञान के इस महान पंडित का ऋणी भारत हमेशा ही रहेगा। इनकी बताई गई शिद्धान्तों पर आज भी वैज्ञानिक रिसर्च करने को तैयार रहते हैं।
2. महर्षि कणाद
Image: महर्षि कणाद

महर्षि कणाद को भारतीय इतिहास में परमाणु शास्त्र का जनक माना जाता है। आधुनिक विज्ञान के वैज्ञानिक जॉन डाल्टन से भी हजारों साल पहले कणाद ने ये बताए थे कि द्रव्य यानी मैटर के परमाणु (Atoms) होतें हैं। कणाद अपने ग्रंथ में लिखते हैं कि भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्म अति सूक्ष्म कणों यानी परमाणुओं के संघनन से होती है। हालांकि, वर्तमान में परमाणु सिद्धांतों का जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है, लेकिन उससे भी लगभग 900 साल पहले महर्षि कणाद ने वेदों में लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत की खोज की थी। प्रसिद्ध इतिहासकार टी एन कॉलेबोर्क अपनी किताब में लिखते हैं की एक समय ऐसा था जब अनु शास्त्र में आचार्य कणाद और दूसरे भारतीय वैज्ञानिक यूरोपिय वैज्ञानिकों की तुलना में ज्यादा आगे थे। आज से 26 साल पहले ब्रह्मांड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सबसे पहले शास्त्रिक रूप में सूत्रबन्ध ढंग से ऋषि कणाद ने अपनी वैषेशिक दर्शन मे लिखा है जो कुछ मामलों में महर्षि कणाद के सिद्धांत आज के विज्ञान से भी आगे हैं। इसके अलावा महर्षि कणाद ने न्यूटन से पहले गति के नियम भी बताए थे।
3. बौधायन
Image: बौधायन

बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या एलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।
4. भास्कराचार्य
Image: भास्कराचार्य

भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय प्राचीन भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ और ज्योतिषी हैं। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रंथ श्रोमणि है, जिसमें लीलावती, बीजगणित गृह गणित और गोलाध्याय नामक 4 भाग हैं। यह चार भाग अर्थमेटिक एलजेब्रा और ग्रहो की गति से संबंधित गणित पर आधारित हैं। आधुनिक युग में गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज का श्रेय न्युटन को जाता है, लेकिन भास्कराचार्य ने न्यूटन के जन्म से 800 साल पहले ही इस नियम के बारे में जान लिया था और इसके बारे में उन्होंने अपने ग्रंथ में भी लिखा है की पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है इस प्रकार आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरती हैं। उन्होंने अपने गोल अध्याय नामक ग्रंथ में मध्य करसन तत्वों के नाम से गुरुत्वाकर्षण के नियमों की विस्तृत जानकारी दी है। भास्कराचार्य ने कारण कोतूहल नामक दूसरे ग्रंथ की रचना की इस पुस्तक में खगोल विज्ञान की गणना है, इस ग्रंथ में उन्होंने बताया है कि जब चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तब सूर्यग्रहण होते हैं और जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा को ढक देती है तब चंद्रग्रहण लगते हैं। यह पहला लिखित प्रमाण था जब भारत के लोगों को दुनिया में सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण, चंद्रग्रहण और सूर्य ग्रहण की सटीक जानकारी थी यह ग्रंथ आज भी हिंदू कैलेंडर बनाने का काम आता है। ये उस समय के प्रसिद्ध गणितज्ञ भी थे, भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में भी किया गया है भास्कराचार्य एक ऐसा वैज्ञानिक थे जिनकी सोच अपने समय में सैकड़ों साल आगे थी।
5. महर्षि सुश्रुत
Image: महर्षि सुश्रुत

महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा यानी सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं। 26 सौ साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के साथ सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। आधुनिक विज्ञान केवल 400 साल पहले से ही सर्जरी कर रहा है लेकिन सुश्रुत ने 26 सौ साल पहले ही यह कर दिखाया था। इनके पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे पानी में उबालकर साफ करने के बाद इस्तेमाल करते थें। इनके द्वारा लिखित सुश्रुत संहिता ग्रंथ में सर्जरी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है, इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे सहित 125 से ज्यादा सर्जरी के लिए आवश्यक उपकरणों के नाम मिलते हैं। और इस ग्रंथ में 300 प्रकार के सर्जरियों का उल्लेख मिलता है, इनकी किताबों का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है जिनका पूरे विश्व ने भरपूर लाभ उठाया है उनका ज्ञान रूस भी पहुंचा और अंग्रेज मात्र 200 साल पहले उनकी प्लास्टिक सर्जरी की तकनीक को अपने यहां ले गए और आगे विकसित किया। नागार्जुन नामक महान चिकित्सा शास्त्री ने सुश्रुतसंहिता का निर्माण कर उसे एक नया स्वरुप प्रदान किया था। यह ग्रंथ आज भी अनुसंधान का विषय है इन्हीं सब खोजो के कारण महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा के जनक माना जाता है।
6. ब्रह्मगुप्त
Image: ब्रह्मगुप्त

7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।
7. वराहमिहिर
Image: वराहमिहिर

वराहमिहिर प्राचीन भारत के एक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे वे गुप्त काल के दौरान रहते थे। इन्होंने जल विज्ञान, भूविज्ञान और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में महान योगदान दिया। वे दावा करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक थे कि दीमक और पौधों भूमिगत पानी की उपस्थिति के संकेत बताते हैं। उन्होंने 6 जानवरों और 30 पौधों की सूची दी जो पानी की उपस्थिति का संकेत देता है। उन्होंने दीमक के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी कि वे पानी के स्तर की गहराई से पानी ले जाने के लिए अपने घरों (बाम्बियों) को गिला रखने के लिए जाते हैं। एक अन्य सिद्धांत जिसने विज्ञान की दुनिया को आकर्षित किया है उनके द्वारा रचित ब्रह्च संहिता में भूकंप बादल सिद्धांत हैं। इस संहिता का तीसरा अध्याय मे भूकंप आने से पहले के संकेतों के बारे में बताया गया है। उन्होंने लिखा है कि भूकंप आने से पहले इस तरह की असामान्य घटनाएं होती है जैसे कि ग्रहों की दशा मे बदलाव, पानी के नीचे की गतिविधियों, भूमिगत पानी, असमान्य बादल का गठन होना और जानवरों के असामान्य व्यवहार। प्राचीन भारत में ज्योतिष को बहुत ही ऊंचा स्थान दिया गया था और आज भी यह जारी है। ज्योतिष, जिसका अर्थ है प्रकाश का विज्ञान जो वेदों से उत्पन्न होता है, इसे वैज्ञानिक रूप से आर्यभट्ट और वराहमिहिर द्वारा व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया गया था। वराहमिहिर विक्रमादित्य के राज्यसभा में नवरत्नों में से एक थे, जो विद्वान थें। उनकी भविष्यवाणियां इतनी सटीक थी कि राजा विक्रमादित्य ने उन्हें 'वराह' का खिताब दिया था।
8. चरक
Image: चरक

चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीकों और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिए अधिक ध्यान रखा गया है। चरक आनुवांशिकी (अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।.

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