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Sunday 19 March 2017

जीवन के लक्षण, पृथ्वी से मिलता जुलता ग्रह मंगल।

मानव इतिहास में मंगल ग्रह ने हमेसा से अपनी ओर ध्यान खींचा है।लेकिन क्या उसकी वजह उसका चटक लाल रंग और आकाश भर में ही उसकी अहमियत है या उसके साथ कोई परग्रही रिस्ता भी जुड़ा है।
20 अगस्त 1975, अमेरिका ने एक टाइटन रॉकेट लांच किया जो अपने साथ वाइकिंग अंतरिक्ष यान ले जा रहा था। वाइकिंग उस समय करीब 68 करोड़ किलोमीटर लंबे सफर पे जा रहा था। और उसकी मंजिल थी मंगल ग्रह। जो एक मानव रहित यान था। यह प्रोजेक्ट 100 करोड़ से भी ज्यादा के था।


वैसे मंगल ग्रह आकार में काफी हद तक हमारे पृथ्वी जैसा है, और यह हमारे पहुच के अंदर माना जाता है। मुख्य धारा के वैज्ञानिक तो यही मानते हैं कि मंगल एक बेजान ग्रह है। रात के आसमान में वैसे , चाँद के बाद ज्यादा चमकीला यही लाल ग्रह है। मानव इतिहास में मंगल ग्रह पे जीवन का अन्दाजा तो उसी वक्त से लगाया जा रहा है जब से से इसे सिर्फ आँखों से देखकर पहचान सकते थे।
मंगल ग्रह का जिक्र सबसे पहले मिस्त्र के खगोल वैज्ञानिको ने किया था। 1534 ईसा पूर्व में उन्होंने ने ही सबसे पहले मानव जगत के मालूम ब्रहमांड के पहले नक्से में रखा था। जिसे सैलुमैट स्टार मैप कहते हैं। करीब 250 साल बाद मिस्त्र के लोगो ने मंगल ग्रह का चित्र सेटो प्रथम के कब्र के छत पर बनाया था।
मंगल ग्रह का सीयडोनिया (Cydonia) क्षेत्र, 30 जुलाई 1976, दस महीने के लंबे सफर के बाद बाइकिंग प्रथम पंहुचा। इतिहास में पहली बार मानवो ने किसी दूसरे ग्रह पर अपना यान उतारा था। वैज्ञानिक जानते थे की मंगल पर जीवन के लक्षण ढूंढना रेत में सुई ढूंढने के बराबर है। मगर जब वाइकिंग ने मंगल पर चार परीक्षण किये तब चौकाने वाले परिणाम सामने आये।वाइकिंग ने एक छोटा सा नमूना लिया, चुटकी भर मिट्टी लेकर, उसे छोटे से कंटेनर में लेकर उसके ऊपर लगातार सात दिनों तक नजर रखी गयी। ये देखने के लिए की उसमे बुलबुले बन रहे है या नहीं। और उस जाँच में नासा के तय पैमाने पर जीवन के लक्षण मिले। इससे विवाद भी खड़े हुए थे।
कई दसको तक मंगल के अध्यन करने के बाद मुख्य धारा के वैज्ञानिक ये मानने लगे हैं कि मंगल पर किसी ज़माने में एक उल्का पिंड का जबरजस्त टक्कर हुई थी। यह ग्रह Aestroide बेल्ट के काफी करीब है। जिससे उल्का पृथ्वी के मुकाबले मंगल पर ज्यादा टकराती थी। वैसे भी इसपे पृथ्वी से ज्यादा गड्ढे हैं। मंगल का चाँद इतना बड़ा नहीं है कि अपने ग्रह का हिफाजत उल्का से कर सके। मंगल ग्रह के लियो (Leo) क्षेत्र में टक्कर से बना एक ऐसा मुहाना है, जिसका व्यास 200 किलो मीटर है। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि शायद उस टक्कर की वजह से मंगल ग्रह के प्लेंटरी सिस्टम को काफी नुकसान हुआ था। शायद जब यह टकराया होगा तब मंगल ग्रह का वायुमंडल का एक बड़ा हिस्सा भी ले गया होगा। मंगलग्रह का Areis Vellis का क्षेत्र, 4 जुलाई 1997, नासा का पाथ फाइंडर यान उतरा। यह वहां पानी के संकेत तलाशने गया था। 1970 के अभियान के बाद से ही वैज्ञानिक ऐसा मानाने लगे हैं कि वाहा कभी पानी से भरा महासागर थे, और जीवन शायद वहा अपने जटिल रूप में मौजूद था। पाथ फाइंडर एक एक्सरे स्पेक्टोमीटर और हाई पवार कैमरे की मदद से मंगल की सतह पर प्राचीन जीवन के लक्षण ढूंढने लगा। उसने वहा कुच्छ ऐसे जगह की तस्वीर भेजी जो पृथ्वी के रेगिस्तान से मेल खाते थे। कुच्छ जगह नदी के सूखे तले जैसी दिख रही थी। ऐसा वि अनुमान लगाया जा रहा है कि वहा सतह के नीचे पानी हैं। पाथ फाइंडर के भेजे गए कुछ तस्वीर ऐसी भी थी वैज्ञानिको को चकरा दिया था। वो एक पर्वत माला थी जिसे उन्होंने नाम दिया ट्विन फिंग्स । जैस की जानते हैं कि पर्वत बनते हैं ज्वालामुखी से, इसका मतलब हुआ की कभी मंगल सजीव था और वहाँ भी जवालामुखी हुआ करती थी। इसमे एक विवादित व्यान ये आया की ये पर्वतमाला गीजा के पिरामिड से मेल खाते हैं, हूबहू।

25 जुलाई 1976 को जब वाइकिंग ने मंगल से सैडोनिया के मैदानो से एक तस्वीर भेजी थी तब भी विवाद ये हुआ था कि उस तस्वीर में एक इंसान का चेहरा नजर आ रहा है और आस पास में पहाड़ी और एक शहर भी नजर आ रहा है, जो हजारो सालो के दौरान रेत और मिटटी में दफ़न हो गए थे।
मंगल ग्रह पर जीवन की खोज हुई है या नहीं इस विवाद की शुरुवात तो 1970 के दसक में शुरू हुए वाइकिंग अभियान के दौरान ही हुई। और वो अभियान आज भी जारी है।

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