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Tuesday 15 August 2017

श्रीकृष्ण के मृत्यु पश्चात, जब अर्जुन आये द्वारका को बचाने

अर्जुन ने बार बार उन लुटेरों से श्रीकृष्ण के रानियों और उनके राज्य को बचाने के लिए युद्ध किये, लेकिन हर बार उनका शक्तिशाली बाण (तीर) साधारण बाण की तरह असफल हो जा रहा था। अर्जुन ने अपनी सारी शक्ति लगा दिये लेकिन वे इस युद्ध मे जीत नही पा रहे थे। उन्हें भी समझ मे नही आ रहा था कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि उनके शक्ति कौशल के आगे बड़े से बड़े योद्धा भी नहीं टिक पाते थे। उनके एक एक अस्त्र से सैंकड़ो मारे जाते थे। लेकिन आज इन साधारण म्लेच्छ और लुटेरों से भी हारना पड़ रहा है, आखिर ऐसा क्यों? जानने के लिये आगे पढ़ें

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कृष्ण के 8 धर्म पत्नियों के अलावा 16100 और पत्नियां थी, जिनमे प्रमुख थी- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक दिन देवराज इंद्र ने भागवान कृष्ण को बताया कि प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण मे काफी परेशान हो गयें हैं, कृपया आप हमें बचाइए। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद अंत मे सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डालें। भौमासुर को मरने के बाद श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्रागज्योतिष का राजा बनाया। भौमासुर के द्वारा हरण कर लाई गईं 16,000 कन्याओं को उन्होंने मुक्त कर दिया। लेकिन श्रीकृष्ण के सामने एक बड़ी दुविधा आ गई कि इन हरण की हुई 16,000 स्त्रियों से कौन विवाह करेगा और इनका आगे का जीवन कैसे बीतेगा। सामाजिक मान्यताओं के चलते भौमासुर द्वारा बंधक बनकर रखी गई इन नारियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था, तब अंत में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया और उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति रूप में स्वीकार किया।

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श्रीकृष्ण और उनका राज्य का नाश होने का श्राप महाभारत युद्ध के बाद रानी गांधारी ने दी थी- "जिस तरह से मेरे पूरे वंश का नाश हुया है वैसे ही आपका यदुवंश का नाश हो जयेगा।" महाभारत युद्ध के बाद जब वे द्वारिका लौटे तो कुछ समय बाद गांधारी का श्राप अपना असर दिखाया और सात्यकि और कृतवर्मा मे झगड़ हो गयें। सात्यकि ने कृतवर्मा का सिर काट डाला जिसके परिणाम बड़े युद्ध में सामने आई। सभी समूहों में विभाजित होकर एक-दूसरे को मारने लगे। इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के सभी यदुवंशी मारे गए केवल बब्रु और दारूक ही बचे रह गए थे। इस घटना से आहत होकर एक दिन श्री कृष्ण जंगल में उदास मन से एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। तभी एक बहेलिया का नजर उनके पैर पर पड़ी श्रीकृष्ण के पैरों के तलवों को हिरण का मुख समझ कर तीर चला दिया। तीर श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा। इसके बाद बहेलिए को बहुत पश्चाताप हुआ और उसने जब क्षमायाचना की तो श्रीकृष्ण ने बहेलिए से कहा कि तूने वही काम किया है, जो विधि में नियत था। अब तू मेरी आज्ञा से स्वर्गलोक प्राप्त करेगा। इस तरह श्रीमद भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण और बलराम की देह समाप्त हो जाने के बाद उनके प्रियजनों ने दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वसुदेव, बलरामजी की पत्नियां, श्रीकृष्ण की आठो पत्नियां आदि सभी ने देह का त्याग कर दिया।
कुछ समय बाद अर्जुन यदुवंश का नाश होने के समाचार पाकर मदद लेकर द्वारका पहुंचे और कृष्ण की मृत्यु की खबर पाकर अत्यंत दुखी हो गए। कृष्ण के जाने के बाद द्वारका में उनकी 16000 रानियां, कुछ महिलाएं, वृद्ध और बालक की शेष रह गए। अर्जुन उन सभी को इन्द्रप्रस्थ के लिए रवाना होने लगे। परंतु जैसे ही लोग द्वारका छोड़ने के लिए तैयार हुए, समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगा। म्लेच्छ और डाकुओं ने द्वारका पर आक्रमण कर दिया और जब अर्जुन उनकी सहायता करने के लिए अस्त्र चलाने लगे तो वे सभी मंत्र भूल गए। जिससे वे इन साधारण लुटेरों से भी हारना पड़ा। इस युद्ध मे अर्जुन बुरी तरह से घायल भी हो गए थे, वे बेहद उदास और अंतर्मन से दुखी हो कर अपने राज लौट गये। उन्हें इस बात का ग्लानि बहुत ज्यादा थी कि वे अपने प्रिय मित्र और शुभ चिंतक भगवान श्रीकृष्ण की ठीक से मदद नही कर पाएं।

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श्रीकृष्ण का पूरा यदुवंश धीरे-धीरे समाप्त हो गया और द्वारिका समुद्र में डूब गई जहां वह अभी भी हैं। अर्जुन, श्रीकृष्ण की कुछ रानियों और शेष प्रजा को लेकर अपने राज्य इन्द्रप्रस्थ आ गए और वापस आकर सारी घटना युधिष्ठिर को बतायें। युधिष्ठिर ने सारी घटना सुनने के बाद बेहद दुखी मन से अर्जुन को बताये की श्रीकृष्ण के देहत्याग करने के बाद कलयुग का असर इस संसार मे छाने लगा है। जिसके कारण तुम उन म्लेच्छ और डाकुयों से हार गये। कलयुग का असर जैसे जैसे बढेगा अच्छे लोगों की शक्ति छीन होती जाएगी और बुरे लोगों का प्रभाव बढ़ जाएगा। लेकिन ऐसा नही है कि बुरे लोग अपने बुरे कर्मो का फल नहीं भोगेंगे, उन्हें कलयुग में भी अपने कर्मो के हिसाब से फल मिलेगा। इसलिये तुम चिंता न करो उन म्लेच्छों और लुटेरों को भी उनके बुरे कर्मो का फल मिलेगा।

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